इस कदर टूटते देखा है।
Prachi Chakravati 2003 (Gujarat)
उसकी जिंदगी की कहानियों को चंद किस्सों में बदलते देखा है, मैने उसे कुछ इस तरह टूटते देखा है।
मौसमी बुखार से उसके मिजाज को, पतझड़ की तरह रोज बिखरते देखा है।
जिसके चेहरे की मुस्कान, कभी दिन बना दिया करती थी, आज उसकी मुस्कान में थकान का ऐहसास देखा है। मैने उसे कुछ इस कदर टूटते देखा है।
जिसकी बाते कभी "बस" कहने पर मजबूर करती थी, आज उसकी आवाज में सिर्फ "हा" या "ना" देखा है। जो कभी हर बात खुलकर बता दिया करता था, आज उसकी चुप्पी को खुलकर हसते देखा है। मैने उसे कुछ इस कदर टूटते देखा है।
उन चमकती, बेखौफ आंखो मे कभी बेसब्री देखी थी, आज उन थकी, बेजान आंखो में नींद की कमी का ऐहसास देखा है। जो हर पांच मिनट में भूख से बेहाल हो जाया करता था, आज उसे चाय पीकर दिन निकालते देखा है। मैने उसे कुछ इस कदर टूटते देखा है।
जो शाम को हसते खेलते घर की और निकल पड़ता था, उसे घंटो तक यूंही बैठे रहकर, घर से भागते देखा है। जो अनजान लोगो से भी पलभर में दोस्ती कर लिया करता था, आज उसे भीड़ में खामोशी से चिल्लाते देखा है। मैने उसे कुछ इस कदर टूटते देखा है।
शाम को अक्सर उसे समुंदर किनारे घंटो बैठे देखा है, उसे बेजान समुंदर में अपनी हकीकत दुनिया से छुपाते देखा है। मैने उसे कुछ इस कदर टूटते देखा है।
उन चमकती, बेखौफ आंखो मे कभी बेसब्री देखी थी, आज उन थकी, बेजान आंखो में नींद की कमी का ऐहसास देखा है। जो हर पांच मिनट में भूख से बेहाल हो जाया करता था, आज उसे चाय पीकर दिन निकालते देखा है। मैने उसे कुछ इस कदर टूटते देखा है।
जो शाम को हसते खेलते घर की और निकल पड़ता था, उसे घंटो तक यूंही बैठे रहकर, घर से भागते देखा है। जो अनजान लोगो से भी पलभर में दोस्ती कर लिया करता था, आज उसे भीड़ में खामोशी से चिल्लाते देखा है। मैने उसे कुछ इस कदर टूटते देखा है।
शाम को अक्सर उसे समुंदर किनारे घंटो बैठे देखा है, उसे बेजान समुंदर में अपनी हकीकत दुनिया से छुपाते देखा है। मैने उसे कुछ इस कदर टूटते देखा है।
उसके इस नए रूप की वजह शायद किसी को पता नहीं, शायद थक गया है, या कुछ मिट सा गया है, शायद कुछ छीन सा गया है, या कुछ खो सा गया है। शायद वक्त से लड़ रहा है, या खुद से भाग रहा है, कुछ समझ नहीं पा रही हूं में की क्या बीत गया है, जो आज भी उसे परेशान कर रहा है।
उसे खुद से रोज लड़ कर जीतते हुए देखा है। उसे हररोज मर के जिंदा होते देखा है,
लोग देख पाए उसे या ना पाए,
लेकिन,
मैने हररोज उसे आयिने में, खुद के अंदर बिखरते देखा है।
About this poem
It's something about someone who goes through a lot and now don't have urge to live more but still try to live in the hope that one day the broken soul will heal too.
Font size:
Written on October 02, 2022
Submitted by prachi1501chakravati on October 04, 2022
Modified on March 05, 2023
- 2:24 min read
- 0 Views
Quick analysis:
Scheme | |
---|---|
Characters | 5,268 |
Words | 481 |
Stanzas | 13 |
Stanza Lengths | 1, 1, 1, 1, 1, 1, 1, 1, 1, 1, 1, 1, 3 |
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"इस कदर टूटते देखा है।" Poetry.com. STANDS4 LLC, 2024. Web. 20 May 2024. <https://www.poetry.com/poem/144072/इस-कदर-टूटते-देखा-है।>.
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